यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है
मिला है दर्द वो दिल को जो राहत-ए-जाँ है
तिरी निगाह समझती है या नहीं देखूँ
लब-ए-ख़मोश में कोई सवाल पिन्हाँ है
मुराद-ए-ज़ौक़ ख़राबी की अब बर आएगी
कि दिल की ताक में वो चश्म-ए-फ़ित्ना-सामाँ है
फ़राग़-ए-हौसलगी पर जुनूँ की शाहिद है
वो एक चाक जो दामन से ता-गरेबाँ है
ये बे-ख़ुदी है मिरे ऐश-ए-ज़िंदगी की कफ़ील
निगाह-ए-शौक़ अभी महव-ए-रू-ए-जानाँ है
बला-कशों की दुआ है कि ऐ ख़ुदा न मिटे
जिगर का दाग़ कि चश्म-ओ-चराग़-ए-हिज्राँ है
हवा है शौक़-ए-सुख़न दिल में मौज-ज़न 'वहशत'
कि हम-सफ़ीर मिरा रो'ब सा सुख़न-दाँ है
ग़ज़ल
यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है
वहशत रज़ा अली कलकत्वी