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यही बहुत है कि अहबाब पूछ लेते हैं | शाही शायरी
yahi bahut hai ki ahbab puchh lete hain

ग़ज़ल

यही बहुत है कि अहबाब पूछ लेते हैं

अतहर नासिक

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यही बहुत है कि अहबाब पूछ लेते हैं
मरे उजड़ने के अस्बाब पूछ लेते हैं

मैं पूछ लेता हूँ यारों से रत-जगों का सबब
मगर वो मुझ से मिरे ख़्वाब पूछ लेते हैं

इसी गली से जहाँ आफ़्ताब उभरा है
कहाँ गया है वो महताब, पूछ लेते हैं

अब आ गए हैं तो इस दश्त के फ़क़ीरों से
रुमूज़-ए-मिम्बर-ओ-मेहराब पूछ लेते हैं

किसी को जा के बताते हैं हाल-ए-दिल 'नासिक'
किसी से हिज्र के आदाब पूछ लेते हैं