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यहाँ से चलेंगे वहाँ से चलेंगे | शाही शायरी
yahan se chalenge wahan se chalenge

ग़ज़ल

यहाँ से चलेंगे वहाँ से चलेंगे

हबीब कैफ़ी

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यहाँ से चलेंगे वहाँ से चलेंगे
कहोगे तो सारे-जहाँ से चलेंगे

कमाँ से चले हैं न जो तीर अब तक
वही तीर तेरी ज़बाँ से चलेंगे

अचानक ही जिन को ठहरना पड़ा है
मिरे पाँव के वो निशाँ से चलेंगे

जिन्हें शौक़-ए-मंसब-ओ-इनाम है वो
झुका कर नज़र बे-ज़बाँ से चलेंगे

मिटा देंगे हस्ती-ओ-बस्ती तुम्हारी
वो नाले जो दर्द-ए-निहाँ से चलेंगे