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यहाँ हो रहीं हैं वहाँ हो रहीं हैं | शाही शायरी
yahan ho rahin hain wahan ho rahin hain

ग़ज़ल

यहाँ हो रहीं हैं वहाँ हो रहीं हैं

आलोक यादव

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यहाँ हो रहीं हैं वहाँ हो रहीं हैं
निहाँ थीं जो बातें अयाँ हो रहीं हैं

इरादे हमारे दुआएँ तुम्हारी
हवाएँ ही ख़ुद बादबाँ हो रहीं हैं

लुटाई किसी ने जवानी वतन पे
दिशाएँ भी शहनाइयाँ हो रहीं हैं

कई आसमाँ आ गिरे हैं ज़मीं पर
ज़मीनें कई आसमाँ हो रहीं हैं

रक़ीबों तलक कैसे पहुँची वो बातें
जो तेरे मिरे दरमियाँ हो रहीं हैं

कोई फूल देवी के चरनों तक आया
कहीं मुंतशिर पत्तियाँ हो रहीं हैं