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यहाँ अलग से कोई कब हिसार मेरा है | शाही शायरी
yahan alag se koi kab hisar mera hai

ग़ज़ल

यहाँ अलग से कोई कब हिसार मेरा है

नूर मोहम्मद यास

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यहाँ अलग से कोई कब हिसार मेरा है
मुझे समेटे हुए ख़ुद ग़ुबार मेरा है

न छीन पाएगा मुझ से कोई नुक़ूश-ए-ख़याल
ये फूल मेरे हैं ये शाख़-सार मेरा है

चलूँ तो धूप का बादल हूँ मैं ख़ुद अपनी जगह
रुकूँ तो हर शजर-ए-साया-दार मेरा है

पढ़ूँ तो नामा किसी का है चेहरा चेहरा मुझे
लिखूँ तो ख़ामा हक़ीक़त-निगार मेरा है

जगह न दे मुझे पलकों पे कम नहीं ये भी
कि मौजज़न तिरी आँखों में प्यार मेरा है

हिसार बाँध ले मुझ में कहा उदासी ने
कोई न आए यहाँ ये हिसार मेरा है

न जाने कब से यहाँ मुंतज़िर था मैं ऐ 'यास'
ख़बर जब आई वहाँ इंतिज़ार मेरा है