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यास-ओ-हिरास-ओ-जौर-ओ-जफ़ा से अलग-थलग | शाही शायरी
yas-o-hiras-o-jaur-o-jafa se alag-thalag

ग़ज़ल

यास-ओ-हिरास-ओ-जौर-ओ-जफ़ा से अलग-थलग

राही फ़िदाई

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यास-ओ-हिरास-ओ-जौर-ओ-जफ़ा से अलग-थलग
इक साएबाँ है क़हर-ए-ख़ुदा से अलग-थलग

देखो उठा है वो भी अलामत के तौर पर
दस्त-ए-दराज़ दस्त-ए-दुआ से अलग-थलग

परवाना-ए-हवा-ओ-हवस हाँ बराए-शौक़
कोई मक़ाम शम-ए-वफ़ा से अलग-थलग

कब तक रहेगा वहशी-ए-एहसास-ओ-आगही
ना-साज़गार आब-ओ-हवा से अलग-थलग

मिल जाएगा हिसार-ए-अज़ीमत के आस पास
कर्ब-ए-सुकूत आह-ओ-बुका से अलग-थलग

सद-हादसात-ए-ख़ाम हैं इबरत-निगाह में
तारीख़-साज़ जुर्म-ओ-सज़ा से अलग-थलग

इस ख़ौफ़ से न सेहर-बयानी पे हर्फ़ आए
'राही' रहे हैं चून-ओ-चरा से अलग-थलग