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यास-ओ-ग़म रंज-ओ-अलम तन्हाइयाँ अब के बरस | शाही शायरी
yas-o-gham ranj-o-alam tanhaiyan ab ke baras

ग़ज़ल

यास-ओ-ग़म रंज-ओ-अलम तन्हाइयाँ अब के बरस

मेहवर नूरी

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यास-ओ-ग़म रंज-ओ-अलम तन्हाइयाँ अब के बरस
मेरी क़िस्मत में रहें नाकामियाँ अब के बरस

रौशनी सूरज की आँखों पर है मंज़र धूप हैं
लग रही हैं सूरतें परछाइयाँ अब के बरस

आईने में देख कर ख़ुद को न तुम होना उदास
आईनों में पड़ गईं हैं झाइयाँ अब के बरस

देखना होगा सितम ये भी ज़बाँ-बंदी के बा'द
काट ली जाएँगी सब की उँगलियाँ अब के बरस

ख़ुश्क-साली तो नहीं है शहर में 'महवर' मगर
अब्र कब बरसाएँगे अल्लाह-मियाँ अब के बरस