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यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था | शाही शायरी
yaron ke iKHlas se pahle dil ka mere ye haal na tha

ग़ज़ल

यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

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यारों के इख़्लास से पहले दिल का मिरे ये हाल न था
अब वो चकनाचूर पड़ा है जिस शीशे में बाल न था

इंसाँ आ कर नई डगर पर खो बैठा है होश-ओ-हवास
पहले भी बेहोश था लेकिन ऐसा भी बद-हाल न था

गुलशन गुलशन वीरानी है जंगल जंगल सन्नाटा
हाए वो दिन जब हर मंज़िल में शोरिश-ए-ग़म का काल न था

क्यूँ रे दिवाने शहर यही है इक इक पल भारी है जहाँ
अपने वीराने में ऐ दिल जी का ये जंजाल न था

हम जो लुटे उस शहर में जा कर दुख लोगों को क्यूँ पहुँचा
अपनी नज़र थी अपना दिल था कोई पराया माल न था

तेरी ख़ाक पे रौशन रौशन 'अख़्तर' जैसे सितारे थे
तुझ सा ऐ महरान की वादी कोई बुलंद-इक़बाल न था