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यार पहलू में निहाँ था मुझे मा'लूम न था | शाही शायरी
yar pahlu mein nihan tha mujhe malum na tha

ग़ज़ल

यार पहलू में निहाँ था मुझे मा'लूम न था

बयान मेरठी

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यार पहलू में निहाँ था मुझे मा'लूम न था
तार-ए-गेसू रग-ए-जाँ था मुझे मा'लूम न था

दिल में वो ग़ुंचा-दहाँ था मुझे मा'लूम न था
गुल शगूफ़ा में निहाँ था मुझे मा'लूम न था

वो ही नूर-ए-दो-जहाँ था मुझे मा'लूम न था
वही याँ था वही वाँ था मुझे मा'लूम न था

दिल मिरा काबा-ए-जाँ था मुझे मा'लूम न था
नाला गुलबाँग-अज़ाँ था मुझे मा'लूम न था

आँख पर डाल दिया दैर-ओ-हरम का पर्दा
वही दोनों में निहाँ था मुझे मा'लूम न था

सिफ़त-ए-नूर-ए-बसारत वो मिरा पर्दा-नशीं
मेरे पर्दे से अयाँ था मुझे मा'लूम न था

हुस्न-ए-सूरत ने दिया जल्वा-ए-मा'नी का पता
बुत न था संग-ए-निशाँ था मुझे मा'लूम न था

जानिब-ए-काबा-ए-मक़्सूद तन-ए-ज़ार मिरा
रविश-ए-रेग-ए-रवाँ था मुझे मा'लूम न था

बे-ख़बर पढ़ने लगा 'मोमिन'-ओ-'ग़ालिब' का कलाम
कुंज-ए-ख़ल्वत में 'बयाँ' था मुझे मा'लूम न था