यार ने इस दिल-ए-नाचीज़ को बेहतर जाना
दाग़ को फूल तो क़तरे को समुंदर जाना
कट गए देखते ही हम तो तिरी चश्म-ए-ग़ज़ब
जुम्बिश-ए-अबरू-ए-ख़मदार को ख़ंजर जाना
सच है यकसाँ है अदम और वजूद-ए-दुनिया
ऐसे होने को न होने के बराबर जाना
आँख हम बादा-कशों से न मिला ऐ जमशेद
अपने चुल्लू को तिरे जाम से बढ़ कर जाना
कब ज़माने में है मोहताज-ए-मकाँ ख़ाना-ख़राब
हो गई दिल में किसी के जो जगह घर जाना
समझे 'जौहर' को बुरा उस की शिकायत क्या है
वही अच्छा है जिसे आप ने बेहतर जाना
ग़ज़ल
यार ने इस दिल-ए-नाचीज़ को बेहतर जाना
लाला माधव राम जौहर