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यार मेरा बहुत है यार-फ़रेब | शाही शायरी
yar mera bahut hai yar-fareb

ग़ज़ल

यार मेरा बहुत है यार-फ़रेब

मीर तक़ी मीर

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यार मेरा बहुत है यार-फ़रेब
मक्र है अहद सब क़रार-फ़रेब

राह रखते हैं उस के दाम से सैद
है बला कोई वो शिकार-फ़रेब

ओहदे से निकलें किस तरह आशिक़
एक अदा उस की है हज़ार-फ़रेब

इल्तिफ़ात-ए-ज़माना पर मत जा
'मीर' देता है रोज़गार-फ़रेब