यार मेरा बहुत है यार-फ़रेब
मक्र है अहद सब क़रार-फ़रेब
राह रखते हैं उस के दाम से सैद
है बला कोई वो शिकार-फ़रेब
ओहदे से निकलें किस तरह आशिक़
एक अदा उस की है हज़ार-फ़रेब
इल्तिफ़ात-ए-ज़माना पर मत जा
'मीर' देता है रोज़गार-फ़रेब
ग़ज़ल
यार मेरा बहुत है यार-फ़रेब
मीर तक़ी मीर