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यार के तीर का निशाना हूँ | शाही शायरी
yar ke tir ka nishana hun

ग़ज़ल

यार के तीर का निशाना हूँ

जोशिश अज़ीमाबादी

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यार के तीर का निशाना हूँ
अपने ताले'अ का मैं दिवाना हूँ

ना-तवानी भी देख कर मुझ को
लगी रोने मैं वो तवाना हूँ

देख देख उस की ज़ुल्फ़-ए-अबतर को
दिल यही चाहता है शाना हूँ

मू परेशाँ है चश्म-ए-ज़ार-ओ-तरार
शजर-ए-बीद ही से माना हूँ

उस से चश्म-ए-वफ़ा रखूँ 'जोशिश'
मैं भी तेरी तरह दिवाना हूँ