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यार के दरसन के ख़ातिर जान और तन भूल जा | शाही शायरी
yar ke darsan ke KHatir jaan aur tan bhul ja

ग़ज़ल

यार के दरसन के ख़ातिर जान और तन भूल जा

अलीमुल्लाह

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यार के दरसन के ख़ातिर जान और तन भूल जा
मुख मुनव्वर देख उस का रंग-ए-गुलशन भूल जा

चढ़ के ताज़ी इश्क़ का नित 'मन-अरफ़' का सैर कर
'क़द-अरफ़' का पहुँच ऐ दिल महल-ओ-मस्कन भूल जा

तर्क दे इस्लाम को और कुफ़्र सारा दूर कर
छोड़ दे हिर्स-ओ-हवा फ़रज़ंद और ज़न भूल जा

आरसी में दिल के हर दम देख मुखड़ा रूह का
जाम को जमशेद के और फ़िक्र-ए-दर्पन भूल जा

दम-ब-दम दिल के नज़र सूँ पी के दरसन का शराब
ऐ 'अलीमुल्लाह' जहाँ के मक्र और फ़न भूल जा