यार कब दिल की जराहत पे नज़र करता है
कौन इस कूचे में जुज़ तेरे गुज़र करता है
अब तो कर ले निगह-ए-लुत्फ़ कि हो तोशा-ए-राह
कि कोई दम में ये बीमार सफ़र करता है
अपनी हैरानी को हम अर्ज़ करें किस मुँह से
कब वो आईने पे मग़रूर नज़र करता है
उम्र फ़रियाद में बर्बाद गई कुछ न हुआ
नाला मशहूर ग़लत है कि असर करता है
यार की बात हमें कौन सुनाता है 'यक़ीं'
कौन कब गुल की दिवानों को ख़बर करता है
ग़ज़ल
यार कब दिल की जराहत पे नज़र करता है
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन