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यार बिन घर में अजब सोहबत है | शाही शायरी
yar bin ghar mein ajab sohbat hai

ग़ज़ल

यार बिन घर में अजब सोहबत है

क़ज़लबाश ख़ाँ उम्मीद

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यार बिन घर में अजब सोहबत है
दर-ओ-दीवार से अब सोहबत है

दिल हमारा उसे करता है रात
ग़ैर से जो सर-ए-शब सोहबत है

दर्द-ए-दिल उस से जो हम ने न कहा
ऐसी हासिल हुई कब सोहबत है

दहर में पास-ए-नफ़स लाज़िम है
शीशा-ओ-संग ये सब सोहबत है

दस्त-ए-अग़्यार है ज़ेर-ए-सर-ए-यार
आज 'उम्मीद' कढब सोहबत है