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याँ मुद्दई' अपना किसे ऐ यार न देखा | शाही शायरी
yan muddai apna kise ai yar na dekha

ग़ज़ल

याँ मुद्दई' अपना किसे ऐ यार न देखा

शैख़ मोहम्मद रोशन जोशिश लखनवी

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याँ मुद्दई' अपना किसे ऐ यार न देखा
है कोई जिसे तेरा तलबगार न देखा

सोतों को जगाया मिरे नाले ने अदम के
पर ताल-ए-ख़्वाबीदा को बेदार न देखा

कल बज़्म में सब पर निगह-ए-लुत्फ़-ओ-करम थी
इक मेरी तरफ़ तू ने सितमगार न देखा

जुज़ चश्म-ए-बुताँ मय-कदा-ए-दहर में 'जोशिश'
हम ने तो किसी मस्त को होश्यार न देखा