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यादों के नशेमन को जलाया तो नहीं है | शाही शायरी
yaadon ke nasheman ko jalaya to nahin hai

ग़ज़ल

यादों के नशेमन को जलाया तो नहीं है

अफ़ज़ल इलाहाबादी

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यादों के नशेमन को जलाया तो नहीं है
हम ने तुझे इस दिल से भुलाया तो नहीं है

कौनैन की वुसअ'त भी सिमट जाती है जिस में
ऐ दिल कहीं तुझ में वो समाया तो नहीं है

हर शय से वो ज़ाहिर है ये एहसान है उस का
ख़ुद को मिरी नज़रों से छुपाया तो नहीं है

ज़ुल्फ़ों की स्याही में अजब हुस्न-ए-निहाँ है
ये रात उसी हुस्न का साया तो नहीं है

वाक़िफ़ हैं तिरे दर्द से ऐ नग़्मा-ए-उल्फ़त
हम ने तुझे हर साज़ पे गाया तो नहीं है

उस ने जो लिखा था कभी साहिल की जबीं पर
उस नाम को मौजों ने मिटाया तो नहीं है

वो शहर की इस भीड़ में आता नहीं 'अफ़ज़ल'
फिर भी चलो देखें कहीं आया तो नहीं है