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याद तेरी जो कभी आती है बहलाने को | शाही शायरी
yaad teri jo kabhi aati hai bahlane ko

ग़ज़ल

याद तेरी जो कभी आती है बहलाने को

एहसान दरबंगावी

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याद तेरी जो कभी आती है बहलाने को
और दीवाना बना जाती है दीवाने को

हम बताएँगे तुम्हें शाना-ओ-गेसू के रुमूज़
ख़त्म कर लो हरम-ओ-दैर के अफ़्साने को

उस को महफ़िल में जो देखा तपिश-ए-ग़म का शरीक
ले लिया शम्अ' ने आग़ोश में परवाने को

बादा-कश वाइ'ज़-ए-कज-फ़हम से क्या बहस करें
उस ने देखा है बहुत दूर से मयख़ाने को

जब न एहसान रहेगा न कहानी उस की
आप दोहराएँगे 'एहसान' के अफ़्साने को