याद रक्खेगा मिरा कौन फ़साना मिरे दोस्त
मैं न मजनूँ हूँ न मजनूँ का ज़माना मिरे दोस्त
हिज्र इंसाँ के ख़द-ओ-ख़ाल बदल देता है
कभी फ़ुर्सत में मुझे देखने आना मिरे दोस्त
शाम ढलने से फ़क़त शाम नहीं ढलती है
उम्र ढल जाती है जल्दी पलट आना मिरे दोस्त
रोज़ कुछ लोग मिरे शहर में मर जाते हैं
ऐन मुमकिन है ठहर कर चले जाना मिरे दोस्त
तुम अगर अब भी खंडर देख के ख़ुश होते हो
तो किसी दिन मिरी जानिब निकल आना मिरे दोस्त
जैसे मिट्टी को हवा साथ लिए फिरती है
मैं कहाँ और कहाँ मेरा ठिकाना मिरे दोस्त
ग़ज़ल
याद रक्खेगा मिरा कौन फ़साना मिरे दोस्त
अशफ़ाक़ नासिर