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याद के शहर मिरी जाँ से गुज़र | शाही शायरी
yaad ke shahr meri jaan se guzar

ग़ज़ल

याद के शहर मिरी जाँ से गुज़र

शाहिदा तबस्सुम

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याद के शहर मिरी जाँ से गुज़र
क़ुर्ब के आख़िरी इम्काँ से गुज़र

जल बुझी थी मैं तिरे खिलने तक
अब मिरी ख़ाक-ए-परेशाँ से गुज़र

अक्स बुनने लगा सहरा तेरे
मेरे सूरज रुख़-ए-ताबाँ से गुज़र

ज़ख़्म गर मेरे हो कुछ और अता
हाँ अबस नश्तर ओ पैकाँ से गुज़र

उठ चुकीं गुल-सुख़नी की रस्में
गोश-ए-जाँ हर्फ़-ए-बहाराँ से गुज़र

आख़िरी लौ न बुझा जाए कहीं
शब-ए-जाँ में रुके मेहमाँ से गुज़र

ऐ मिरे अब्र मिरी मिट्टी की
तिश्नगी पर सर-ए-मिज़्गाँ से गुज़र

आँख अब तीरगी-ए-ग़म से बुझी
अश्क-ए-ख़ूँ जश्न-ए-चराग़ाँ से गुज़र