याद कहाँ रखनी है तेरा ख़्वाब कहाँ रखना है
दिल में याद फिर आँखों में महताब कहाँ रखना है
वो कहता है आख़िरी बाब-ए-इश्क़ मुकम्मल कर लें
और मैं सोच रहा हूँ पहला बाब कहाँ रखना है
हुस्न की यकताई का बस इतना एहसास है मुझ को
काँटों की तरतीब में एक गुलाब कहाँ रखना है
ग़ज़ल
याद कहाँ रखनी है तेरा ख़्वाब कहाँ रखना है
सलीम कौसर