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याद जो आए ख़ुद शरमाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने | शाही शायरी
yaad jo aae KHud sharmaen uf ri jawani hae zamane

ग़ज़ल

याद जो आए ख़ुद शरमाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने

हबीब आरवी

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याद जो आए ख़ुद शरमाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
जेठ में बैठे सावन गाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने

हँसते हँसते रूठ भी जाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
सोना चाँदी दोनों कटाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने

दूर जुनूँ में यास का आलम हश्र से पहले हश्र का मंज़र
तपता मौसम सर्द हवाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने

दिन का चक्कर रात के फेरे पाँव दबा कर राह का चलना
चोर की सूरत ख़ुद घबराएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने

गीत सुरीला तान अनोखी नश्शे का आलम कैफ़ सरापा
जैसे कनहय्या बंसी बजाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने

किस का डर और किस का खटका एक ही साहिल एक ही रस्ता
सपनों की नाव खेते जाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने

आह 'हबीब' इस दौर की बातें ख़्वाब की लज़्ज़त यास का आलम
करती थीं इशारे जब लैलाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने