EN اردو
याद-ए-माज़ी के उजालों में बहुत देर तलक | शाही शायरी
yaad-e-mazi ke ujalon mein bahut der talak

ग़ज़ल

याद-ए-माज़ी के उजालों में बहुत देर तलक

मुनीरुद्दीन सहर सईदी

;

याद-ए-माज़ी के उजालों में बहुत देर तलक
डूबा रहता हूँ ख़यालों में बहुत देर तलक

नाम से भी मिरे वाक़िफ़ नहीं होता कोई
वो जो रहते न हवालों में बहुत देर तलक

जब भी उन गालों के गिर्दाब पे पड़ती है नज़र
ग़र्क़ रहता हूँ ख़यालों में बहुत देर तलक

मुज़्तरिब रहती हैं आहट पे चमक जाती हैं
कौन रह पाए ग़ज़ालों में बहुत देर तलक

नग़्मा-ओ-साज़ की तासीर तिलस्माती है
गूँज रहती है शिवालों में बहुत देर तलक

फ़ज़्ल-ए-रब जान के जब खाता हूँ रूखी-सूखी
लुत्फ़ आता है निवालों में बहुत देर तलक

ख़ूबी-ए-शे'र के चर्चे भी रहे ख़ूब 'सहर'
आप के चाहने वालों में बहुत देर तलक