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याद आती रही भुला न सके | शाही शायरी
yaad aati rahi bhula na sake

ग़ज़ल

याद आती रही भुला न सके

नुशूर वाहिदी

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याद आती रही भुला न सके
शम्अ' जलती रही बुझा न सके

चाँद-तारे गुल-ओ-चमन मिल कर
दिल की इक दास्ताँ सुना न सके

आस बाँधी थी जिन सितारों से
देर तक वो भी जगमगा न सके

नग़्मा क्या मुतरिबान-ए-अहद-ए-जदीद
तार टूटे हुए मिला न सके

आज वो रहबर-ए-ख़लाइक़ हैं
ख़ुद को जो आदमी बना न सके

पंजा-ए-गुल से भी ये मतवाले
दामन-ए-ज़िंदगी छुड़ा न सके

ग़म के मारे हुए क़ुलूब 'नुशूर'
दर्द की सरहदों को पा न सके