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याद आए हैं अहद-ए-जुनूँ के खोए हुए दिल-दार बहुत | शाही शायरी
yaad aae hain ahd-e-junun ke khoe hue dil-dar bahut

ग़ज़ल

याद आए हैं अहद-ए-जुनूँ के खोए हुए दिल-दार बहुत

अली सरदार जाफ़री

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याद आए हैं अहद-ए-जुनूँ के खोए हुए दिल-दार बहुत
उन से दूर बसाई बस्ती जिन से हमें था प्यार बहुत

एक इक कर के खिली थीं कलियाँ एक इक कर के फूल गए
एक इक कर के हम से बिछड़े बाग़-ए-जहाँ में यार बहुत

हुस्न के जल्वे आम हैं लेकिन ज़ौक़-ए-नज़ारा आम नहीं
इश्क़ बहुत मुश्किल है लेकिन इश्क़ के दा'वेदार बहुत

ज़ख़्म कहो या खिलती कलियाँ हाथ मगर गुलदस्ता है
बाग़-ए-वफ़ा से हम ने चुने हैं फूल बहुत और ख़ार बहुत

जो भी मिला है ले आए हैं दाग़-ए-दिल या दाग़-ए-जिगर
वादी वादी मंज़िल मंज़िल भटके हैं 'सरदार' बहुत