EN اردو
या तो तारीख़ की अज़्मत से लिपट कर सो जा | शाही शायरी
ya to tariKH ki azmat se lipaT kar so ja

ग़ज़ल

या तो तारीख़ की अज़्मत से लिपट कर सो जा

फ़े सीन एजाज़

;

या तो तारीख़ की अज़्मत से लिपट कर सो जा
या किसी टूटे हुए बुत से चिमट कर सो जा

नन्हा बच्चा है तो आ माँ के घने आँचल में
रात की छलनी सड़क ही से लिपट कर सो जा

हर घड़ी शोर मचाती हुई मख़्लूक़ के बीच
अपने होने के यक़ीं से ज़रा हट कर सो जा

नींद उड़ने का मज़ा तू भी चखा दे उन को
चाल मक्कार सितारों की उलट कर सो जा

ओढ़ ले सारे बदन पर तू हवा की चादर
और तूफ़ान की बाँहों में सिमट कर सो जा

ऐ ख़लीफ़ा ऐ नए वक़्त के हारून-रशीद
तो रिवायात-ए-शब-ए-अद्ल से कट कर सो जा