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या डर मुझे तेरा है कि मैं कुछ नहीं कहता | शाही शायरी
ya Dar mujhe tera hai ki main kuchh nahin kahta

ग़ज़ल

या डर मुझे तेरा है कि मैं कुछ नहीं कहता

आसिफ़ुद्दौला

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या डर मुझे तेरा है कि मैं कुछ नहीं कहता
या हौसला मेरा है कि मैं कुछ नहीं कहता

हमराह रक़ीबों के तुझे बाग़ में सुन कर
दिल देने का समरा है कि मैं कुछ नहीं कहता

कहता है बहुत कुछ वो मुझे चुपके ही चुपके
ज़ाहिर में ये कहता है कि मैं कुछ नहीं कहता

कहता है तू कुछ या नहीं 'आसिफ़' से ये तू जान
याँ किस को सुनाता है कि मैं कुछ नहीं कहता