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वो ज़ुल्म तो करते हैं सज़ा से नहीं डरते | शाही शायरी
wo zulm to karte hain saza se nahin Darte

ग़ज़ल

वो ज़ुल्म तो करते हैं सज़ा से नहीं डरते

रूप साग़र

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वो ज़ुल्म तो करते हैं सज़ा से नहीं डरते
इस दौर के इंसान ख़ुदा से नहीं डरते

ऐसे भी हैं कुछ लोग जो दौलत के नशे में
मज़लूम की आहों से दुआ से नहीं डरते

हर हाल में जीने की क़सम खाई है हम ने
हम अहल-ए-मोहब्बत हैं जफ़ा से नहीं डरते

हम ज़हर भी पी लेंगे बड़े शौक़ से लेकिन
डरते हैं मसीहा से दवा से नहीं डरते

मर कर भी दिखा देंगे तिरे चाहने वाले
हैं तालिब-ए-दीदार फ़ना से नहीं डरते

हर हाल में मंज़िल पे नज़र होती है जिनकी
राहों में कभी राह-नुमा से नहीं डरते

इस दौर में जीना कोई आसाँ नहीं 'सागर'
हर रोज़ जो मरते हैं कज़ा से नहीं डरते