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वो यक-ब-यक उसे दल में उतारने का अमल | शाही शायरी
wo yak-ba-yak use dal mein utarne ka amal

ग़ज़ल

वो यक-ब-यक उसे दल में उतारने का अमल

नदीम फ़ाज़ली

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वो यक-ब-यक उसे दल में उतारने का अमल
वो अपनी ज़ात पे शब-ख़ून मारने का अमल

हज़ार वसवसे दिल में और इक दहकता अलाव
हयात-ए-दश्त में रातें गुज़ारने का अमल

बस एक ख़ोशा-ए-गंदुम और ऐसी दर-ब-दरी
वो आसमाँ को ज़मीं पर उतारने का अमल

ये उमर मेज़ है गवय्या क़िमार-ख़ाने की
बस एक जीत की ख़्वाहिश में हारने का अमल

वो बंद ख़ुशबू का बाद-ए-सबा के वो नाख़ुन
कली के जिस्म से कपड़े उतारने का अमल

ग़ज़ब का शोर मचाते होए ये सन्नाटे
वो बे-सदा भी किसी को पुकारने का अमल

हुइ है शाम फिर अश्कों से इक वज़ू हो 'नदीम'
फिर एक रात सितारे शुमारने का अमल