EN اردو
वो वुसअतें थीं दिल में जो चाहा बना लिया | शाही शायरी
wo wusaten thin dil mein jo chaha bana liya

ग़ज़ल

वो वुसअतें थीं दिल में जो चाहा बना लिया

सूफ़ी तबस्सुम

;

वो वुसअतें थीं दिल में जो चाहा बना लिया
सहरा बना लिया कभी दरिया बना लिया

यूँ रश्क की निगाह से किस किस को देखते
हर आरज़ू को अपनी तमन्ना बना लिया

कब तक जहाँ से दर्द की दौलत समेटते
ख़ुद अपने दिल को ग़म का ख़ज़ीना बना लिया

दुनिया की कोफ़्तों को गवारा न कर सके
उक़्बा को ज़िंदगी का सहारा बना लिया

थी काएनात-ए-हुस्न की सादा सी इक झलक
हम ने निगाह-ए-शौक़ से क्या क्या बना लिया

इस दिल को हम ने तेरी निगाहों के साथ साथ
बेगाना कर लिया कभी अपना बना लिया