वो उमंगें हैं न वो दिल है न अब वो जोश है
हुस्न बार-ए-चश्म है नग़्मा वबाल-ए-गोश है
मैं कहूँ तो क्या कहूँ अब वो कहे तो क्या कहे
दे के दिल ख़ामोश हूँ वो ले के दिल ख़ामोश है
ऐ वफ़ूर-ए-शादमानी ये समझ लेने तो दे
क्या हमीं हैं जिस से वो हम-बज़्म हम-आग़ोश है
इस तरफ़ दिल पर जिगर पर उस तरफ़ रहता है हाथ
अपनी हर करवट में इक माशूक़ हम-आग़ोश है
तार इस का टूटने पाए न 'कैफ़ी' हश्र तक
दामन-ए-अश्क-ए-नदामत जुर्म-ए-इस्याँ-पोश है

ग़ज़ल
वो उमंगें हैं न वो दिल है न अब वो जोश है
कैफ़ी हैदराबादी