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वो तुझ को तोड़ के मिस्ल-ए-हबाब कर देगा | शाही शायरी
wo tujhko toD ke misl-e-habab kar dega

ग़ज़ल

वो तुझ को तोड़ के मिस्ल-ए-हबाब कर देगा

कौसर सीवानी

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वो तुझ को तोड़ के मिस्ल-ए-हबाब कर देगा
तिरा ग़ुरूर तुझे आब आब कर देगा

ठहर सकेगी कहाँ शबनमी गुहर की चमक
बस इक नज़र में फ़ना आफ़्ताब कर देगा

कभी तो फैलेगी बाग़-ए-हयात में ख़ुशबू
गुलाब खिल के फ़ज़ा को गुलाब कर देगा

रुख़-ए-फ़रेब पे ठहरेगी क्या नक़ाब-ए-फ़रेब
तिरा फ़रेब तुझे बे-नक़ाब कर देगा

न रास आएगी ताबीर-ए-ख़्वाब-ए-मुस्तक़बिल
ये वक़्त ख़्वाब के मंज़र को ख़्वाब कर देगा

दिखा के चेहरा-ए-माज़ी के ख़द्द-ओ-ख़ाल तुझे
सवाल-ए-दौर-ए-रवाँ ला-जवाब कर देगा

जहाँ को देगी जो 'कौसर' पयाम-ए-अम्न-ओ-अमाँ
अदीब-ए-वक़्त रक़म वो किताब कर देगा