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वो थे पहलू में और थी चाँदनी रात | शाही शायरी
wo the pahlu mein aur thi chandni raat

ग़ज़ल

वो थे पहलू में और थी चाँदनी रात

सूफ़ी तबस्सुम

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वो थे पहलू में और थी चाँदनी रात
हमारी ज़िंदगी थी बस वही रात

अजब चश्मक-ज़नी थी वस्ल की रात
नज़र उन की थी और तारों-भरी रात

निगाह-ए-मस्त उन की कह रही है
कहीं होती रही साक़ी-गरी रात

अबस है वादा-ए-फ़र्दा तुम्हारा
मरीज़-ए-इश्क़ की है आख़िरी रात

किसी ने वादा-ए-फ़र्दा किया है
हमें मर कर बसर करनी पड़ी रात

'तबस्सुम' से किसी के बन गई थी
मिरी ख़ल्वत सरापा चाँदनी रात