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वो सितम-परवर ब-चश्म अश्क-बार आ ही गया | शाही शायरी
wo sitam-parwar ba-chashm ashk-bar aa hi gaya

ग़ज़ल

वो सितम-परवर ब-चश्म अश्क-बार आ ही गया

बशीर फ़ारूक़

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वो सितम-परवर ब-चश्म अश्क-बार आ ही गया
चाक-दामानी पे मेरी उस को प्यार आ ही गया

मिटते मिटते मिट गई जान-ए-वफ़ा की आरज़ू
आते आते बे-क़रारी को क़रार आ ही गया

चुपके चुपके मुझ पे मेरी ख़ामुशी हँसती रही
रोते रोते जज़्ब-ए-दिल पर इख़्तियार आ ही गया

कोई वा'दा जिस का मा'नी-आश्ना होता नहीं
फिर उसी वा'दा-शिकन पर ए'तिबार आ ही गया

या इलाही जज़्बा-ए-होश-ओ-ख़िरद की ख़ैर हो
मुंतज़िर जिस का जुनूँ था वो दयार आ ही गया