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वो सितम न ढाए तो क्या करे उसे क्या ख़बर कि वफ़ा है क्या? | शाही शायरी
wo sitam na Dhae to kya kare use kya KHabar ki wafa hai kya?

ग़ज़ल

वो सितम न ढाए तो क्या करे उसे क्या ख़बर कि वफ़ा है क्या?

कलीम आजिज़

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वो सितम न ढाए तो क्या करे उसे क्या ख़बर कि वफ़ा है क्या?
तू उसी को प्यार करे है क्यूँ ये 'कलीम' तुझ को हुआ है क्या?

तुझे संग-दिल ये पता है क्या कि दुखे दिलों की सदा है क्या?
कभी चोट तू ने भी खाई है कभी तेरा दिल भी दुखा है क्या?

तू रईस-ए-शहर-ए-सितम-गराँ मैं गदा-ए-कूचा-ए-आशिक़ाँ
तू अमीर है तो बता मुझे मैं ग़रीब हूँ तो बुरा है क्या?

तू जफ़ा में मस्त है रोज़-ओ-शब मैं कफ़न-ब-दोश ओ ग़ज़ल-ब-लब
तिरे रोब-ए-हुस्न से चुप हैं सब मैं भी चुप रहूँ तो मज़ा है क्या?

ये कहाँ से आई है सुर्ख़-रू है हर एक झोंका लहू लहू
कटी जिस में गर्दन-ए-आरज़ू ये उसी चमन की हवा है क्या?

अभी तेरा दौर-ए-शबाब है अभी क्या हिसाब-ओ-किताब है
अभी क्या न होगा जहान में अभी इस जहाँ में हुआ है क्या?

यही हम-नवा यही हम-सुख़न यही हम-निशाँ यही हम-वतन
मिरी शाइ'री ही बताएगी मिरा नाम क्या है पता है क्या?