EN اردو
वो सितम-गर है ख़यालात समझने वाला | शाही शायरी
wo sitam-gar hai KHayalat samajhne wala

ग़ज़ल

वो सितम-गर है ख़यालात समझने वाला

क़मर जलालाबादी

;

वो सितम-गर है ख़यालात समझने वाला
मुझ से पहले मिरे जज़्बात समझने वाला

मैं ने रक्खा है हमेशा ही तबस्सुम लब पर
रो दिया क्यूँ मिरे हालात समझने वाला

जो न समझे तेरी मंज़िल वो यूँही चलता रहा
रुक गया तेरे मक़ामात समझने वाला

जो न समझे वो बनाते रहे लाखों बातें
हुआ ख़ामोश तिरी बात समझने वाला

राज़-ए-तक़्दीर पे क्या रौशनी डालेगा कोई
ख़ुद सवाली है सवालात समझने वाला