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वो शख़्स जो रखता है जमाल और तरह का | शाही शायरी
wo shaKHs jo rakhta hai jamal aur tarah ka

ग़ज़ल

वो शख़्स जो रखता है जमाल और तरह का

ख़ालिद मोईन

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वो शख़्स जो रखता है जमाल और तरह का
है उस से बिछड़ने का मलाल और तरह का

आसार ख़राबी के हैं, आग़ाज़ से ज़ाहिर
लगता है कि गुज़रेगा, ये साल और तरह का

इस शहर-ए-ज़ियाँ-कार के इम्कान से बाहर
मैं अब के दिखाऊँगा, कमाल और तरह का

होता है हमेशा ही नए रंज में डूबा
इस जादा-ए-वहशत पे धमाल और तरह का

इस शहर-ए-फ़ुसूँ-गर के अज़ाब और, सवाब और
हिज्र और तरह का है, विसाल और तरह का

अब घर से निकलना ही पड़ेगा कि मुख़ालिफ़
इस बार! उठाते हैं, सवाल और तरह का