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वो शख़्स जो नज़र आता था हर किसी की तरह | शाही शायरी
wo shaKHs jo nazar aata tha har kisi ki tarah

ग़ज़ल

वो शख़्स जो नज़र आता था हर किसी की तरह

असरार ज़ैदी

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वो शख़्स जो नज़र आता था हर किसी की तरह
हिसार तोड़ के निकला है रौशनी की तरह

सदा में ढल के लबों तक जो हर्फ़ आया था
अब उस का ज़हर भी डसता है ख़ामुशी की तरह

ये साल तूल-ए-मसाफ़त से चूर चूर गया
ये एक साल तो गुज़रा है इक सदी की तरह

तुम्ही कोई शजर-ए-साया-दार ढूँड रखो
कि वो तो अपने लिए भी है अजनबी की तरह

ये अहद टूट रहा है नए उफ़ुक़ के लिए
हयात डाल चुकी है ख़ुद-आगही की तरह