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वो शब के साए में फ़स्ल-ए-नशात काटते हैं | शाही शायरी
wo shab ke sae mein fasl-e-nashat kaTte hain

ग़ज़ल

वो शब के साए में फ़स्ल-ए-नशात काटते हैं

अज़हर अदीब

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वो शब के साए में फ़स्ल-ए-नशात काटते हैं
हम अपनी ज़ात के हुजरे में रात काटते हैं

अजीब लोग हैं इस अहद-ए-बे-मुरव्वत के
ज़बान काट न पाएँ तो बात काटते हैं

ये लम्हा अहल-ए-मोहब्बत पे सख़्त भारी है
ये लम्हा अहल-ए-मोहब्बत के साथ काटते हैं

थकन से पूरा बदन चूर चूर होता है
पहाड़ काटते हैं हम कि रात काटते हैं

ये रंग ले के कहाँ आ गए हो तुम 'अज़हर'
यहाँ तो लोग मुसव्विर के हाथ काटते हैं