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वो सँवर सकता है माक़ूल भी हो सकता है | शाही शायरी
wo sanwar sakta hai maqul bhi ho sakta hai

ग़ज़ल

वो सँवर सकता है माक़ूल भी हो सकता है

ख़ाक़ान ख़ावर

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वो सँवर सकता है माक़ूल भी हो सकता है
मेरा अंदाज़ा मिरी भूल भी हो सकता है

अब पस-ए-अब्र है जब अब्र से बाहर निकला
वो चमक सकता है मक़्बूल भी हो सकता है

दूर से देखा है नज़दीक से भी देखूँगा
फूल सा लगता है जो फूल भी हो सकता है

आज की शब भी सितारों ने अगर साथ दिया
दिल जो बे-कार है मशग़ूल भी हो सकता है

क्यूँ समझता हूँ कि आता है वो मेरी ख़ातिर
सैर उस शख़्स का मामूल भी हो सकता है

तख़्त तब्दील भी हो सकता है तख़्ते में कभी
अपने ओहदे से वो माज़ूल भी हो सकता है

जानता कौन था 'ख़ावर' वो दरख़्शाँ तारा
गिर के आँखों से कभी धूल भी हो सकता है