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वो सनम ख़ूगर-ए-वफ़ा न हुआ | शाही शायरी
wo sanam KHugar-e-wafa na hua

ग़ज़ल

वो सनम ख़ूगर-ए-वफ़ा न हुआ

शौक़ देहलवी मक्की

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वो सनम ख़ूगर-ए-वफ़ा न हुआ
ये भी अच्छा हुआ बुरा न हुआ

आ गया लुत्फ़ ज़िंदगानी का
दर्द जो क़ाबिल-ए-दवा न हुआ

उम्र भर हम जुदा रहे उस से
हम से दम भर भी जो जुदा न हुआ

कहे देती हैं शर्म-गीं नज़रें
क्या हुआ रात और क्या न हुआ

'शौक़' ने लिक्खे सैंकड़ों दफ़्तर
हर्फ़-ए-मतलब मगर अदा न हुआ