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वो सई क़फ़स में कर कि टूटे | शाही शायरी
wo sai qafas mein kar ki TuTe

ग़ज़ल

वो सई क़फ़स में कर कि टूटे

जोशिश अज़ीमाबादी

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वो सई क़फ़स में कर कि टूटे
इस में रहे बाल-ओ-पर कि टूटे

पा-ए-तलब उस की जुस्तुजू में
याँ तक फिरे दर-ब-दर कि टूटे

रोने का तार बंध रहा है
ऐसा न हो चश्म-ए-तर कि टूटे

है बे-मय-ए-इश्क़ शीशा-ए-दिल
मार उस को तू संग पर कि टूटे

दुनिया से तो टूटता नहीं दिल
ऐसी कुछ फ़िक्र कर कि टूटे

हुई बस कि ख़ुशी-ए-ज़ख़्म-ए-ताज़ा
हैं टाँके तिरे जिगर कि टूटे

महशर में भी नींद ग़ाफ़िलों की
मुमकिन नहीं बे-ख़बर कि टूटे

'जोशिश' हर ख़ार-ए-दश्त पर याँ
इस तरह क़दम न धर कि टूटे