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वो राहें जिन से अभी तक नहीं गुज़र मेरा | शाही शायरी
wo rahen jin se abhi tak nahin guzar mera

ग़ज़ल

वो राहें जिन से अभी तक नहीं गुज़र मेरा

मुस्लिम सलीम

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वो राहें जिन से अभी तक नहीं गुज़र मेरा
लगा हुआ है इन्हीं रास्तों को डर मेरा

न जाने कौन था जिस ने मुझे बचाया है
मुझे ख़बर भी न थी जल रहा था घर मेरा

नहीं है बोझ मिरे नाम पर मनासिब का
मैं आदमी हूँ तआरुफ़ है मुख़्तसर मेरा

गँवा के ज़ात को लाया हूँ ज़िंदगी की ख़बर
मिरी सुनो कि हवाला है मो'तबर मेरा

भटक रहा हूँ अभी ज़िंदगी के सहरा में
ख़बर नहीं कि कहाँ ख़त्म हो सफ़र मेरा