वो पीपल के तले टूटी हुई मेहराब का मंज़र
दिखा देता है मुझ को इक दिल-ए-बेताब का मंज़र
चला कर काग़ज़ी कश्ती कोई मासूम हँसता था
बहुत ही ख़ूबसूरत था कभी तालाब का मंज़र
सफ़र वो मुतमइन करता रहा बिफरे समुंदर में
कि उस के ज़ेहन में उभरा न था गिर्दाब का मंज़र
थपेड़ों में भी सर महफ़ूज़ हैं पक्के मकानों के
तुम आँखें खोल कर देखो ज़रा सैलाब का मंज़र
अक़ीदत से बहाए फूल यूँ झुक कर पुजारन ने
कि रंगीं हो गया दरिया में इक गिर्दाब का मंज़र
सुकूँ राहत तबस्सुम गीत साँसों में घुली ख़ुशबू
'सदफ़' लगता है मुझ को ये अनोखे ख़्वाब का मंज़र
ग़ज़ल
वो पीपल के तले टूटी हुई मेहराब का मंज़र
सदफ़ जाफ़री