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वो पौ फटी वो किरन से किरन में आग लगी | शाही शायरी
wo pau phaTi wo kiran se kiran mein aag lagi

ग़ज़ल

वो पौ फटी वो किरन से किरन में आग लगी

अदीब सहारनपुरी

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वो पौ फटी वो किरन से किरन में आग लगी
वो शब की ज़ुल्फ़-ए-शिकन-दर-शिकन में आग लगी

सुलग उठी वो रिदा-ए-नुजूम-ओ-काहकशाँ
वो देख दामन-ए-चर्ख़-ए-कुहन में आग लगी

नशात-ए-गर्मी-ए-महफ़िल थी जिस की ताबानी
इसी चराग़ से क्यूँ अंजुमन में आग लगी

हज़ार शम्स-ओ-क़मर बुझ गए प ये न बुझी
ये किस दिए से पतंगों के मन में आग लगी

तमाम उम्र के आँसू उसे बुझा न सके
जो दिल से ता-ब-जिगर दम-ज़दन में आग लगी

भुला सकेगी न दुनिया ये हादिसा कि 'अदीब'
चराग़-ए-लाला-ओ-गुल से चमन में आग लगी