वो पर्दा ज़ीनत-ए-दर के सिवा कुछ और नहीं
हमारे हुस्न-ए-नज़र के सिवा कुछ और नहीं
सुराग़-ए-काहकशाँ अहल-ए-दिल को मिल ही गया
तुम्हारी राहगुज़र के सिवा कुछ और नहीं
न जाने कौन सा ईफ़ा-ए-अहद का दिन हो
तुम्हें तो शाम-ओ-सहर के सिवा कुछ और नहीं
मुरादें इश्क़ में सब को मिलें मगर मुझ को
नसीब दर्द-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं
ये किस तिलिस्म में मुझ को हयात ले आई
जहाँ फ़रेब-ए-नज़र के सिवा कुछ और नहीं
न पूछिए मिरी नाकामी-ए-मनाज़िल-ए-शौक़
हुसूल-ए-गर्द-ए-सफ़र के सिवा कुछ और नहीं
वो ना-मुराद मोहब्बत हूँ जिस के दामन में
सरिश्क-ए-दीदा-ए-तर के सिवा कुछ और नहीं
हयात-ए-इश्क़ की रूदाद क्या कहूँ ऐ 'सैफ़'
अज़ाब-ए-शाम-ओ-सहर के सिवा कुछ और नहीं
ग़ज़ल
वो पर्दा ज़ीनत-ए-दर के सिवा कुछ और नहीं
सैफ़ बिजनोरी