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वो नीची निगाहें वो हया याद रहेगी | शाही शायरी
wo nichi nigahen wo haya yaad rahegi

ग़ज़ल

वो नीची निगाहें वो हया याद रहेगी

अनवर साबरी

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वो नीची निगाहें वो हया याद रहेगी
मिल कर भी न मिलने की अदा याद रहेगी

मुमकिन है मिरे बाद भुला दें मुझे लेकिन
ता उम्र उन्हें मेरी वफ़ा याद रहेगी

जब मैं ही नहीं याद रफ़ीक़ान-ए-सफ़र को
हैराँ हूँ कि मंज़िल उन्हें क्या याद रहेगी

कुछ याद रहे या न रहे ज़िक्र-ए-गुलिस्ताँ
ग़ुंचों के चटकने की सदा याद रहेगी

महरूम रहे अहल-ए-चमन निकहत-ए-गुल से
बेगानगी-ए-मौज-ए-सबा याद रहेगी

पलकों पे लरज़ते रहे 'अनवर' जो शब-ए-ग़म
मुझ को उन्हीं तारों की ज़िया याद रहेगी