वो नीची निगाहें वो हया याद रहेगी
मिल कर भी न मिलने की अदा याद रहेगी
मुमकिन है मिरे बाद भुला दें मुझे लेकिन
ता उम्र उन्हें मेरी वफ़ा याद रहेगी
जब मैं ही नहीं याद रफ़ीक़ान-ए-सफ़र को
हैराँ हूँ कि मंज़िल उन्हें क्या याद रहेगी
कुछ याद रहे या न रहे ज़िक्र-ए-गुलिस्ताँ
ग़ुंचों के चटकने की सदा याद रहेगी
महरूम रहे अहल-ए-चमन निकहत-ए-गुल से
बेगानगी-ए-मौज-ए-सबा याद रहेगी
पलकों पे लरज़ते रहे 'अनवर' जो शब-ए-ग़म
मुझ को उन्हीं तारों की ज़िया याद रहेगी
ग़ज़ल
वो नीची निगाहें वो हया याद रहेगी
अनवर साबरी