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वो नहीं है तो ज़िंदगी कैसी | शाही शायरी
wo nahin hai to zindagi kaisi

ग़ज़ल

वो नहीं है तो ज़िंदगी कैसी

नज़ीर रामपुरी

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वो नहीं है तो ज़िंदगी कैसी
इस अँधेरे में रौशनी कैसी

दिल की बर्बादियों के मातम पर
ज़ेर-ए-लब है तिरे हँसी कैसी

कौन रह रह के याद आता है
दिल में रहती है बेकली कैसी

सोज़-ए-दिल ने बदन जला डाला
फिर मिरे रुख़ पे ताज़गी कैसी

हम-सफ़र हो के कारवाँ लौटा
रहबरी में ये रहज़नी कैसी

मुझ को एहसास-ए-आसमाँ न रहा
छाँव ज़ुल्फ़ों की थी घनी कैसी

मुझ से बर्बाद-ए-इश्क़ पर ऐ दोस्त
महव-ए-हैरत हूँ बरहमी कैसी

रस्म-ए-दुनिया अजीब है यारो
ग़म ही ग़म है यहाँ ख़ुशी कैसी

दिल की दुनिया तबाह कर डाली
ये शरारत ये दिल-लगी कैसी

किस की नज़रों में आ गया मैं 'नज़ीर'
मेरे शे'रों में नग़्मगी कैसी