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वो न चाहे तो मैं बीना न रहूँ | शाही शायरी
wo na chahe to main bina na rahun

ग़ज़ल

वो न चाहे तो मैं बीना न रहूँ

महमूद अयाज़

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वो न चाहे तो मैं बीना न रहूँ
वो जो चाहे तो नज़र भी आए

वो मिरे साथ है साए की तरह
दिल की ज़िद है कि नज़र भी आए

उस से ही इज़्न-ए-सफ़र माँगा है
उस से ही ज़ाद-ए-सफ़र भी आए

उस ने तौफ़ीक़-ए-दुआ बख़्शी है
अब दुआओं में असर भी आए

कभी आहों से उठे बाद-ए-मुराद
कभी अश्कों से गुहर भी आए