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वो मिज़ा मारती कटारी है | शाही शायरी
wo mizha marti kaTari hai

ग़ज़ल

वो मिज़ा मारती कटारी है

किशन कुमार वक़ार

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वो मिज़ा मारती कटारी है
चशम-ए-बद्दूर ज़ख़्म कारी है

आँखें चमका गया वो बर्क़-आसा
दिल मिरा वक़्फ़-ए-बे-क़रारी है

क़ैस बाद-ए-सबा है बू लैला
शाख़-ए-गुल नाफ़े की सवारी है

ज़ुल्फ़ तक गो न पहुँचा शाना-वार
हाथ को पर उमीद-वारी है

दिल पे चढ़ती नहीं कोई तदबीर
मेरी तक़दीर वो उतारी है

दोस्तों से है उन की अय्यारी
और आ'दा से दोस्त-दारी है

दम समझता है ऐ 'वक़ार' वो शोख़
मेरी दो दिन से दम-शुमारी है